जाड़ों की रात थी। दस बजे ही सड़कें बनà¥à¤¦ हो गयी थीं और गालियों में सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤¾ था। बूढ़ी बेवा मां ने अपने नौजवान बेटे धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° के सामने थाली परोसते हà¥à¤ कहा-तà¥à¤® इतनी रात तक कहां रहते हो बेटा? रखे-रखे खाना ठंडा हो जाता है। चारों तरफ सोता पड़ गया। आग à¤à¥€ तो इतनी नहीं रहती कि इतनी रात तक बैठी तापती रहूà¤à¥¤
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° हृषà¥à¤Ÿ-पà¥à¤·à¥à¤Ÿ, सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° नवयà¥à¤µà¤• था। थाली खींचता हà¥à¤† बोला-अà¤à¥€ तो दस à¤à¥€ नहीं बजे अमà¥à¤®à¥‰à¤à¥¤ यहां के मà¥à¤°à¥à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤² आदमी सरे-शाम ही सो जाà¤à¤‚ तो कोई कà¥à¤¯à¤¾ करे। योरोप में लोग बारह-à¤à¤• बजे तक सैर-सपाटे करते रहते हैं। जिनà¥à¤¦à¤—ी के मज़े उठाना कोई उनसे सीख ले। à¤à¤• बजे से पहले तो कोई सोता ही नहीं।
मां ने पूछा-तो आठ-दस बजे सोकर उठते à¤à¥€ होंगे।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने पहलू बचाकर कहा-नहीं, वह छ: बजे ही उठबैठते हैं। हम लोग बहà¥à¤¤ सोने के आदी हैं। दस से छ: बजे तक, आठघणà¥à¤Ÿà¥‡ होते हैं। चौबीस में आठघणà¥à¤Ÿà¥‡ आदमी सोये तो काम कà¥à¤¯à¤¾ करेगा? यह बिलकà¥à¤² गलत है कि आदमी को आठघणà¥à¤Ÿà¥‡ सोना चाहिà¤à¥¤ इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ जितना कम सोये, उतना ही अचà¥à¤›à¤¾à¥¤ हमारी सà¤à¤¾ ने अपने नियमों में दाखिल कर लिया है कि मेमà¥à¤¬à¤°à¥‹à¤‚ को तीन घणà¥à¤Ÿà¥‡ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ न सोना चाहिà¤à¥¤
मां इस सà¤à¤¾ का जिकà¥à¤° सà¥à¤¨à¤¤à¥‡-सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ तंग आ गयी थी। यह न खाओ, वह न खाओ, यह न पहनो, वह न पहनो, न बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ करो, न शादी करो, न नौकरी करो, न चाकरी करो, यह सà¤à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ लोगों को संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ बनाकर छोड़ेगी? इतना तà¥à¤¯à¤¾à¤— तो संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ ही कर सकता है। तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ à¤à¥€ तो नहीं मिलते। उनमें à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के गà¥à¤²à¤¾à¤®, नाम के तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी हैं। आज सोने की à¤à¥€ क़ैद लगा दी। अà¤à¥€ तीन महीने का घूमना खतà¥à¤® हà¥à¤†à¥¤ जाने कहां-कहां मारे फिरते हैं। अब बारह बजे खाइà¤à¥¤ या कौन जाने रात को खाना ही उड़ा दें। आपतà¥à¤¤à¤¿ के सà¥à¤µà¤° में बोली-तà¤à¥€ तो यह सूरत निकल आयी है कि चाहो तो à¤à¤•-à¤à¤• हडà¥à¤¡à¥€ गिन लो। आख़िर सà¤à¤¾à¤µà¤¾à¤²à¥‡ कोई काम à¤à¥€ करते हैं या सिरà¥à¤«à¤¼ आदमियों पर कैदें ही लगाया करते हैं?
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° बोला-जो काम तà¥à¤® करती हो वहीं हम करते हैं। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ राषà¥à¤Ÿà¤¼ की सेवा करना है, हमारा उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ à¤à¥€ राषà¥à¤Ÿà¤¼ की सेवा करना है।
बूढ़ी विधवा आजादी की लड़ाई में दिलो-जान से शरीक थी। दस साल पहले उसके पति ने à¤à¤• राजदà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• à¤à¤¾à¤·à¤£ देने के अपराध में सजा पाई थी। जेल में उसका सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ बिगड़ गंया और जेल ही में उसका सà¥à¤µà¤°à¥à¤—वास हो गया। तब से यह विधवा बड़ी सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ और लगन से राषà¥à¤Ÿà¤¼ की सेवा सेवा में लगी हà¥à¤ˆ थी। शà¥à¤°à¥‚ में उसका नौजवान बेटा à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ सेवकों में शमिल हो गया था। मगर इधर पांच महीनों से वह इस नयी सà¤à¤¾ में शरीक हो गया और उसको जोशीले कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤“ं मे समà¤à¤¾ जाता था।
मां ने संदेह के सà¥à¤µà¤° में पूछा-तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ सà¤à¤¾ का कोई दफà¥à¤¤à¤° हैं?
‘हां है।’
‘उसमें कितने मेमà¥à¤¬à¤° हैं?’
‘अà¤à¥€ तो सिरà¥à¤«à¤¼ पचास मेमà¥à¤¬à¤° हैं? वह पचीस आदमी जो कà¥à¤› कर सकते हैं, वह तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पचीस हजार à¤à¥€ नहीं कर सकते। देखो अमà¥à¤®à¤¾à¤‚, किसी से कहना मत वरà¥à¤¨à¤¾ सबसे पहले मेरी जान पर आफ़त आयेगी। मà¥à¤à¥‡ उमà¥à¤®à¥€à¤¦ नहीं कि पिकेटिंग और जà¥à¤²à¥‚सों से हमें आजादी हासिल हो सके। यह तो अपनी कमज़ोरी और बेबसी का साफ़ à¤à¤²à¤¾à¤¨ हैं। à¤à¤‚डियां निकालकर और गीत गाकर कौमें नहीं आज़ाद हà¥à¤† करतीं। यहां के लोग अपनी अकल से काम नहीं लेते। à¤à¤• आदमी ने कहा-यों सà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ मिल जाà¤à¤—ा। बस, आंखें बनà¥à¤¦ करके उसके पीछे हो लिà¤à¥¤ वह आदमी गà¥à¤®à¤°à¤¾à¤¹ है और दूसरों को à¤à¥€ गà¥à¤®à¤°à¤¾à¤¹ कर रहा है। यह लोग दिल में इस खà¥à¤¯à¤¾à¤² से खà¥à¤¶ हो लें कि हम आज़ादी के करीब आते जाते हैं। मगर मà¥à¤à¥‡ तो काम करने का यह ढंग बिलà¥à¤•à¥à¤² खेल-सा मालूम होता है। लड़कों के रोने-धोने और मचलने पर खिलौने और मिठाइयां मिला करती है-वही इन लोगों को मिल जाà¤à¤—ा। असली चीज तो तà¤à¥€ मिलेगी, जब हम उसकी कीमत देने को तैयार होंगे।
मां ने कहा-उसकी कीमत कà¥à¤¯à¤¾ हम नहीं दे रहे हैं? हमारे लाखों आदमी
जेल नहीं गये? हमने डंडे नहीं खाये? हमने अपनी जायदादें नहीं जबà¥à¤¤ करायीं?
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤°-इससे अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ को कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨ हà¥à¤†? वे हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ उसी वकà¥à¤¤ छोड़ेगे, जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यकीन हो जाà¤à¤—ा कि अब वे à¤à¤• पल-à¤à¤° à¤à¥€ नहीं रह सकते। अगर आज हिनà¥à¤¦à¥‹à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ के à¤à¤• हजार अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ कतà¥à¤² कर दिठजाà¤à¤‚ तो आज ही सà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ मिल जाà¤à¥¤ रूस इसी तरह आज़ाद हà¥à¤†, आयरलैणà¥à¤¡ à¤à¥€ इसी तरह आज़ाद हà¥à¤†, हिनà¥à¤¦à¥‹à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ à¤à¥€ इसी तरह आज़ाद होगा और कोई तरीका नहीं। हमें उनका खातà¥à¤®à¤¾ कर देना है। à¤à¤• गोरे अफसर के कतà¥à¤² कर देने से हà¥à¤•à¥‚मत पर जितना डर छा जाता है, उतना à¤à¤• हजार जà¥à¤²à¥‚सों से मà¥à¤®à¤•à¤¿à¤¨ नहीं।
मां सर से पांव तक कापं उठी। उसे विधवा हà¥à¤ दस साल हो गठथे। यही लड़का उसकी जिंदगी का सहारा है। इसी को सीने से लगाठमेहनत-मजदूरी करके अपने मà¥à¤¸à¥€à¤¬à¤¤ के दिन काट रही है। वह इस खयाल से खà¥à¤¶ थी कि यह चार पैसे कमायेगा, घर में बहू आà¤à¤—ी, à¤à¤• टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¤¾ खाऊà¤à¤—ी, और पड़ी रहूà¤à¤—ी। आरजà¥à¤“ं के पतले-पतले तिनकों से उसने ठकिशà¥à¤¤à¥€ बनाई थी। उसी पर बैठकर जिनà¥à¤¦à¤—ी के दरिया को पार कर रही थी। वह किशà¥à¤¤à¥€ अब उसे लहरों में à¤à¤•à¥‹à¤²à¥‡ खाती हà¥à¤ˆ मालूम हà¥à¤ˆà¥¤ उसे à¤à¤¸à¤¾ महसूस हà¥à¤† कि वह किशà¥à¤¤à¥€ दरिया में डूबी जा रही है। उसने अपने सीने पर हाथ रखकर कहा-बेटा, तà¥à¤® कैसी बातें कर रहे हो। कà¥à¤¯à¤¾ तà¥à¤® समà¤à¤¤à¥‡ हो, अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ को कतà¥à¤² कर देने से हम आज़ाद हो जायेंगे? हम अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ के दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ नहीं। हम इस राजà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ के दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ हैं। अगर यह राजà¥à¤¯-पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ हमारे à¤à¤¾à¤ˆ-बनà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के ही हाथों में हो-और उसका बहà¥à¤¤ बड़ा हिसà¥à¤¸à¤¾ है à¤à¥€-तो हम उसका à¤à¥€ इसी तरह विरोध करेंगे। विदेश में तो कोई दूसरी क़ौम राज न करती थी, फिर à¤à¥€ रूस वालों ने उस हà¥à¤•à¥‚मत का उखाड़ फेंका तो उसका कारण यही था कि जार पà¥à¤°à¤œà¤¾ की परवाह न करता था। अमीर लोग मज़े उड़ाते थे, गरीबों को पीसा जाता था। यह बातें तà¥à¤® मà¥à¤à¤¸à¥‡ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जानते हो। वही हाल हमारा है। देश की समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ किसी न किसी बहाने निकलती चली जाती है और हम गरीब होते जाते हैं। हम इस अवैधानिक शासन को बदलना चाहते हैं। मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पैरों में पड़ती हूà¤, इस सà¤à¤¾ से अपना नाम कटवा लो। खामखाह आग़ में न कूदो। मै अपनी आंखों से यह दृशà¥à¤¯ नहीं देखना चाहती कि तà¥à¤® अदालत में खून के जà¥à¤°à¥à¤® में लाठजाओ।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° पर इस विनती का कोई असर नहीं हà¥à¤†à¥¤ बोला-इसका कोई डर नहीं। हमने इसके बारे में काफ़ी à¤à¤¹à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¤ कर ली है। गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° होना तो बेवकूफी है। हम लोग à¤à¤¸à¥€ हिकमत से काम करना चाहते हैं कि कोई गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° न हो।
मां के चेहरे पर अब डर की जगह शरà¥à¤®à¤¿à¤‚नà¥à¤¦à¤—ी की à¤à¤²à¤• नज़र आयी। बोली-यह तो उससे à¤à¥€ बà¥à¤°à¤¾ है। बेगà¥à¤¨à¤¾à¤¹ सज़ा पायें और क़ातिल चैन से बैठे रहें! यह शरà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤• हरकत है। मैं इसे कमीनापन समà¤à¤¤à¥€ हूà¤à¥¤ किसी को छिपकर क़तà¥à¤² करना दगाबाजी है, मगर अपने बदले बेगà¥à¤¨à¤¾à¤¹ à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ को फंसा देना देशदà¥à¤°à¥‹à¤¹ है। इन बेगà¥à¤¨à¤¾à¤¹à¥‹à¤‚ का खून à¤à¥€ कातिल की गरà¥à¤¦à¤¨ पर होगा।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने अपनी मां की परेशानी का मजा लेते हà¥à¤ कहा-अमà¥à¤®à¤¾à¤‚, तà¥à¤® इन बातों को नहीं समà¤à¤¤à¥€à¥¤ तà¥à¤® अपने धरने दिठजाओ, जà¥à¤²à¥‚स निकाले जाओ। हम जो कà¥à¤› करते हैं, हमें करने दो। गà¥à¤¨à¤¾à¤¹ और सवाब, पाप और पà¥à¤£à¥à¤¯, धरà¥à¤® और अरà¥à¤§à¤®, यह निररà¥à¤¥à¤• शबà¥à¤¦ है। जिस काम का तà¥à¤® सापेकà¥à¤· समà¤à¤¤à¥€ हो, उसे मैं पà¥à¤£à¥à¤¯ समà¤à¤¤à¤¾ हूà¤à¥¤ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कैसे समà¤à¤¾à¤Šà¤ कि यह सापेकà¥à¤· शबà¥à¤¦ हैं। तà¥à¤®à¤¨à¥‡ à¤à¤—वदगीता तो पढ़ी है। कृषà¥à¤£ à¤à¤—वान ने साफ़ कहा है-मारने वाला मै हूà¤, जिलाने वाला मैं हूà¤, आदमी न किसी को मार सकता है, न जिला सकता है। फिर कहां रहा तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ पाप? मà¥à¤à¥‡ इस बात की कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ शरà¥à¤® हो कि मेरे बदले कोई दूसरा मà¥à¤œà¤°à¤¿à¤® करार दिया गया। यह वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त लड़ाई नहीं, इंगà¥à¤²à¥ˆà¤£à¥à¤¡ की सामूहिक शकà¥à¤¤à¤¿ से यà¥à¤¦à¥à¤§ है। मैं मरूं या मेरे बदले कोई दूसरा मरे, इसमें कोई अनà¥à¤¤à¤° नहीं। जो आदमी राषà¥à¤Ÿà¤¼ की जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सेवा कर सकता है, उसे जीवित रहने का जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अधिकार है।
मां आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ से लड़के का मà¥à¤¹à¤‚ देखने लगी। उससे बहस करना बेकार था। अपनी दलीलों से वह उसे कायल न कर सकती थी। धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° खाना खाकर उठगया। मगर वह à¤à¤¸à¥€ बैठी रही कि जैसे लक़वा मार गया हो। उसने सोचा-कहीं à¤à¤¸à¤¾ तो नहीं कि वह किसी का क़तà¥à¤² कर आया हो। या कतà¥à¤² करने जा रहा हो। इस विचार से उसके शरीर के कंपकंपी आ गयी। आम लोगों की तरह हतà¥à¤¯à¤¾ और खून के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ घृणा उसके शरीर के कण-कण में à¤à¤°à¥€ हà¥à¤ˆ थी। उसका अपना बेटा खून करे, इससे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लजà¥à¤œà¤¾, अपमान, घृणा की बात उसके लिठऔर कà¥à¤¯à¤¾ हो सकती थी। वह राषà¥à¤Ÿà¤¼ सेवा की उस कसौटी पर जान देती थी जो तà¥à¤¯à¤¾à¤—, सदाचार, सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ और साफ़दिली का वरदान है। उसकी आंखों मे राषà¥à¤Ÿà¤¼ का सेवक वह था जो नीच से नीच पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ का दिल à¤à¥€ न दà¥à¤–ाये, बलà¥à¤•à¤¿ जरूरत पड़ने पर खà¥à¤¶à¥€ से अपने को बलिदान कर दे। अहिंसा उसकी नैतिक à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं का सबसे पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ अंग थी। अगर धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° किसी गरीब की हिमायत में गोली का निशाना बन जाता तो वह रोती जरूर मगर गरà¥à¤¦à¤¨ उठाकर। उसे ग़हरा शोक होता, शायद इस शोक में उसकी जान à¤à¥€ चली जाती। मगर इस शोक में गरà¥à¤µ मिला हà¥à¤† होता। लेकिन वह किसी का खून कर आये यह à¤à¤• à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• पाप था, कलंक था। लड़के को रोके कैसे, यही सवाल उसके सामने था। वह यह नौबत हरगिज न आने देगी कि उसका बेटा खून के जà¥à¤°à¥à¤® में पकड़ा न जाये। उसे यह बरदाशà¥à¤¤ था कि उसके जà¥à¤°à¥à¤® की सजा बेगà¥à¤¨à¤¾à¤¹à¥‹à¤‚ को मिले। उसे ताजà¥à¤œà¥à¤¬ हो रहा था, लड़के मे यह पागलपन आया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कर? वह खाना खाने बैठी मगर कौर गले से नीचे न जा सका। कोई जालिम हाथ धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° को उनकी गोद से छीन लेता है। वह उस हाथ को हटा देना चाहती थी। अपने जिगर के टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‡ को वह à¤à¤• कà¥à¤·à¤£ के लिठà¤à¥€ अलग न करेगी। छाया की तरह उसके पीछे-पीछे रहेगी। किसकी मजाल है जो उस लड़के को उसकी गोद से छीने!
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° बाहर के कमरे में सोया करता था। उसे à¤à¤¸à¤¾ लगा कि कहीं वह न चला गया हो। फौरन उसके कमरे में आयी। धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° के सामने दीवट पर दिया जल रहा था। वह à¤à¤• किताब खोले पढ़ता-पढ़ता सो गया था। किताब उसके सीने पर पड़ी थी। मां ने वहीं बैठकर अनाथ की तरह बड़ी सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ और विनय के साथ परमातà¥à¤®à¤¾ से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की कि लड़के का हृदय-परिवरà¥à¤¤à¤¨ कर दे। उसके चेहरे पर अब à¤à¥€ वहीं à¤à¥‹à¤²à¤¾à¤ªà¤¨, वही मासूमियत थी जो पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹-बीस साल पहले नज़र आती थी। करà¥à¤•à¤¶à¤¤à¤¾ या कठोरता का कोई चिहृन न था। मां की सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚तपरता à¤à¤• कà¥à¤·à¤£ के लिठममता के आंचल में छिप गई। मां ने हृदय से बेटे की हारà¥à¤¦à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को देखा। इस नौजवान के दिल में सेवा की कितनी उंमग है, कोम का कितना दरà¥à¤¦ हैं, पीड़ितों से कितनी सहानà¥à¤à¥‚ति हैं अगर इसमे बूढ़ों की-सी सूà¤-बूà¤, धीमी चाल और धैरà¥à¤¯ है तो इसका कà¥à¤¯à¤¾ कारण है। जो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤£ जैसी पà¥à¤°à¤¿à¤¯ वसà¥à¤¤à¥ को बलिदान करने के लिठततà¥à¤ªà¤° हो, उसकी तड़प और जलन का कौन अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ कर सकता है। काश यह जोश, यह दरà¥à¤¦ हिंसा के पंजे से निकल सकता तो जागरण की पà¥à¤°à¤—ति कितनी तेज हो जाती!
मां की आहट पाकर धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° चौंक पड़ा और किताब संà¤à¤¾à¤²à¤¤à¤¾ हà¥à¤† बोला-तà¥à¤® कब आ गयीं अमà¥à¤®à¤¾à¤‚? मà¥à¤à¥‡ तो जाने कब नींद आ गयी।
मॉठने दीवट को दूर हटाकर कहा-चारपाई के पास दिया रखकर न सोया करो। इससे कà¤à¥€-कà¤à¥€ दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾à¤à¤‚ हो जाया करती हैं। और कà¥à¤¯à¤¾ सारी रात पढ़ते ही रहोगे? आधी रात तो हà¥à¤ˆ, आराम से सो जाओ। मैं à¤à¥€ यहीं लेटी जाती हूà¤à¥¤ मà¥à¤à¥‡ अनà¥à¤¦à¤° न जाने कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ डर लगता है।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤°-तो मैं à¤à¤• चारपाई लाकर डाले देता हूà¤à¥¤
‘नहीं, मैं यहीं जमीन पर लेट जाती हूà¤à¥¤â€™
‘वाह, मैं चारपाई पर लेटूठऔर तू जमीन पर पड़ी रहो। तà¥à¤® चारपाई पर आ जाओ।’
‘चल, मैं चारपाई पर लेटूं और तू जमीन पर पड़ा रहे यह तो नहीं हो सकता।’
‘मैं चारपाई लिये आता हूà¤à¥¤ नहीं तो मैं à¤à¥€ अनà¥à¤¦à¤° ही लेटता हूà¤à¥¤ आज आप डरीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚?’
‘तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ बातों ने डरा दिया। तू मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ अपनी सà¤à¤¾ में नहीं सरीक कर लेता?’
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने कोई जवाब नहीं दिया। बिसà¥à¤¤à¤° और चारपाई उठाकर अनà¥à¤¦à¤° वाले कमरे में चला। मॉठआगे-आगे चिराग दिखाती हà¥à¤ˆ चली। कमरे में चारपाई डालकर उस पर लेटता हà¥à¤† बोला-अगर मेरी सà¤à¤¾ में शरीक हो जाओ तो कà¥à¤¯à¤¾ पूछना। बेचारे कचà¥à¤šà¥€-कचà¥à¤šà¥€ रोटियां खाकर बीमार हो रहे हैं। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अचà¥à¤›à¤¾ खाना मिलने लगेगा। फिर à¤à¤¸à¥€ कितनी ही बातें हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• बूढ़ी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ जितनी आसानी से कर सकती है, नौजवान हरगिज़ नहीं कर सकते। मसलन, किसी मामले का सà¥à¤°à¤¾à¤— लगाना, औरतों में हमारे विचारों का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करना। मगर तà¥à¤® दिलà¥à¤²à¤—ी कर रही हो!
मां ने गà¤à¥à¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ से कहा-नहीं बेटा दिलà¥à¤²à¤—ी नहीं कर रही। दिल से कह रही हूà¤à¥¤ मां का दिल कितना नाजà¥à¤• होता है, इसका अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ तà¥à¤® नहीं कर सकते। तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ इतने बड़े खतरे में अकेला छोड़कर मैं घर नहीं बैठसकती। जब तक मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› नहीं मालूम था, दूसरी बात थी। लेकिन अब यह बातें जान लेने के बाद मैं तà¥à¤®à¤¸à¥‡ अलग नहीं रह सकती। मैं हमेशा तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ बग़ल में रहूà¤à¤—ी और अगर कोई à¤à¤¸à¤¾ मौक़ा आया तो तà¥à¤®à¤¸à¥‡ पहले मैं अपने को कà¥à¤°à¥à¤¬à¤¾à¤¨ करूà¤à¤—ी। मरते वकà¥à¤¤ तà¥à¤® मेरे सामने होगे। मेरे लिठयही सबसे बड़ी खà¥à¤¶à¥€ है। यह मत समà¤à¥‹ कि मैं नाजà¥à¤• मौक़ों पर डर जाऊंगी, चीखूंगी, चिलà¥à¤²à¤¾à¤Šà¤‚गी, हरगिज नहीं। सखà¥à¤¤ से सखà¥à¤¤ खतरों के सामने à¤à¥€ तà¥à¤® मेरी जबान से à¤à¤• चीख न सà¥à¤¨à¥‹à¤—े। अपने बचà¥à¤šà¥‡ की हिफाज़त के लिठगाय à¤à¥€ शेरनी बन जाती है।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ से विहृल होकर मां के पैरों को चूम लिया। उसकी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में वह कà¤à¥€ इतने आदर और सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ के योगà¥à¤¯ न थी।
2
दूसरे ही दिन परीकà¥à¤·à¤¾ का अवसर उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ यह दो दिन बà¥à¤¢à¤¼à¤¿à¤¯à¤¾ ने रिवालà¥à¤µà¤° चलाने के अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ में खरà¥à¤š किये। पटाखे की आवाज़ पर कानों पर हाथ रखने वाली, अहिंसा और धरà¥à¤® की देवी, इतने साहस से रिवालà¥à¤µà¤° चलाती थी और उसका निशाना इतना अचूक होता था कि सà¤à¤¾ के नौजवानों को à¤à¥€ हैरत होती थी।
पà¥à¤²à¤¿à¤¸ के सबसे बड़े अफ़सर के नाम मौत का परवाना निकला और यह काम धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° के सà¥à¤ªà¥à¤°à¥à¤¦ हà¥à¤†à¥¤
दोनों घर पहà¥à¤à¤šà¥‡ तो मां ने पूछा-कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ बेटा, इस अफ़सर ने तो कोई à¤à¤¸à¤¾ काम नहीं किया फिर सà¤à¤¾ ने कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ उसको चà¥à¤¨à¤¾?
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° मां की सरलता पर मà¥à¤¸à¥à¤•à¤°à¤¾à¤•à¤° बोला-तà¥à¤® समà¤à¤¤à¥€ हो हमारी कांसà¥à¤Ÿà¥‡à¤¬à¤¿à¤² और सब-इंसà¥à¤ªà¥‡à¤•à¥à¤Ÿà¤° और सà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤£à¥à¤Ÿà¥‡à¤£à¥à¤¡à¥ˆà¤£à¥à¤Ÿ जो कà¥à¤› करते हैं, अपनी खà¥à¤¶à¥€ से करते हैं? वे लोग जितने अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° करते हैं, उनके यही आदमी जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° हैं। और फिर हमारे लिठतो इतना ही काफ़ी है कि वह उस मशीन का à¤à¤• खास पà¥à¤°à¥à¤œà¤¾ है जो हमारे राषà¥à¤Ÿà¥à¤° को चरम निरà¥à¤¦à¤¯à¤¤à¤¾ से बरà¥à¤¬à¤¾à¤¦ कर रही है। लड़ाई में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त बातों से कोई पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ नहीं, वहां तो विरोध पकà¥à¤· का सदसà¥à¤¯ होना ही सबसे बड़ा अपराध है।
मां चà¥à¤ª हो गयी। कà¥à¤·à¤£-à¤à¤° बाद डरते-डरते बोली-बेटा, मैंने तà¥à¤®à¤¸à¥‡ कà¤à¥€ कà¥à¤› नहीं मांगा। अब à¤à¤• सवाल करती हूà¤, उसे पूरा करोगे?
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने कहा-यह पूछने की कोई जरूरत नहीं अमà¥à¤®à¤¾, तà¥à¤® जानती हो मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ किसी हà¥à¤•à¥à¤® से इनà¥à¤•à¤¾à¤° नहीं कर सकता।
मां-हां बेटा, यह जानती हूà¤à¥¤ इसी वजह से मà¥à¤à¥‡ यह सवाल करने की हिमà¥à¤®à¤¤ हà¥à¤ˆà¥¤ तà¥à¤® इस सà¤à¤¾ से अलग हो जाओ। देखो, तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ बूढ़ी मां हाथ जोड़कर तà¥à¤®à¤¸à¥‡ यह à¤à¥€à¤– मांग रही है।
और वह हाथ जोड़कर à¤à¤¿à¤–ारिन की तरह बेटे के सामने खड़ी हो गयी। धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने क़हक़हा मारकर कहा-यह तो तà¥à¤®à¤¨à¥‡ बेढब सवाल किया, अमà¥à¤®à¤¾à¤‚। तà¥à¤® जानती हो इसका नतीजा कà¥à¤¯à¤¾ होगा? जिनà¥à¤¦à¤¾ लौटकर न आऊà¤à¤—ा। अगर यहां से कहीं à¤à¤¾à¤— जाऊं तो à¤à¥€ जान नहीं बच सकती। सà¤à¤¾ के सब मेमà¥à¤¬à¤° ही मेरे खून के पà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‡ हो जायेंगे और मà¥à¤à¥‡ उनकी गोलियों का निशाना बनना पड़ेगा। तà¥à¤®à¤¨à¥‡ मà¥à¤à¥‡ यह जीवन दिया है, इसे तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ चरणों पर अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर सकता हूà¤à¥¤ लेकिन à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ ने तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ और मà¥à¤à¥‡ दोनों ही को जीवन दिया है और उसका हक सबसे बड़ा है। अगर कोई à¤à¤¸à¤¾ मौक़ा हाथ आ जाय कि मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ की सेवा के लिठतà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कतà¥à¤² करना पड़े तो मैं इस अपà¥à¤°à¤¿à¤¯ करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ से à¤à¥€ मà¥à¤¹à¤‚ न मोड़ सकूंगा। आंखों से आंसू जारी होंगे, लेकिन तलवार तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ गरà¥à¤¦à¤¨ पर होगी। हमारे धरà¥à¤® में राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में कोई दूसरी चीज नहीं ठहर सकती। इसलिठसà¤à¤¾ को छोड़ने का तो सवाल ही नहीं है। हां, तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ डर लगता हो तो मेरे साथ न जाओ। मैं कोई बहाना कर दूंगा और किसी दूसरे कामरेड को साथ ले लूंगा। अगर तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ दिल में कमज़ोरी हो, तो फ़ौरन बतला दो।
मां ने कलेजा मजबूत करके कहा-मैंने तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ खà¥à¤¯à¤¾à¤² से कहा था à¤à¤‡à¤¯à¤¾, वरà¥à¤¨à¤¾ मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤¯à¤¾ डर।
अंधेरी रात के परà¥à¤¦à¥‡à¤‚ में इस काम को पूरा करने का फैसला किया गया था। कोप का पातà¥à¤° रात को कà¥à¤²à¤¬ से जिस वकà¥à¤¤ लौटे वहीं उसकी जिनà¥à¤¦à¤—ी का चिराग़ बà¥à¤à¤¾ दिया जाय। धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने दोपहर ही को इस मौके का मà¥à¤†à¤‡à¤¨à¤¾ कर लिया और उस खास जगह को चà¥à¤¨ लिया जहां से निशाना मारेगा। साहब के बंगले के पास करील और करौंदे की à¤à¤• छोटी-सी à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥€ थी। वही उसकी छिपने की जगह होगी। à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥€ के बायीं तरफ़ नीची ज़मीन थी। उसमें बेर और अमरूद के बाग़ थे। à¤à¤¾à¤— निकलने का अचà¥à¤›à¤¾ मौक़ा था।
साहब के कà¥à¤²à¤¬ जाने का वकà¥à¤¤ सात और आठबजे के बीच था, लौटने का वकà¥à¤¤ गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बजे था। इन दोनों वकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की बात पकà¥à¤•à¥€ तरह मालूम कर ली गयी थी। धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने तय किया कि नौ बजे चलकर उसी करौंदेवाली à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥€ में छिपकर बैठजाय। वहीं à¤à¤• मोड़ à¤à¥€ था। मोड़ पर मोटर की चाल कà¥à¤› धीमी पड़ जायेगी। ठीक इसी वकà¥à¤¤ उसे रिवालà¥à¤µà¤° का निशाना बना लिया जाय।
जà¥à¤¯à¥‹à¤‚-जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ दिन गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ जाता था, बूढ़ी मां का दिल à¤à¤¯ से सूखता जाता था। लेकिन धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° के दैनंदिन आचरण में तनिक à¤à¥€ अनà¥à¤¤à¤° न था। वह नियत समय पर उठा, नाशà¥à¤¤à¤¾ किया, सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ की और अनà¥à¤¯ दिनों की तरह कà¥à¤› देर पढ़ता रहा। दो-चार मितà¥à¤° आ गये। उनके साथ दो-तीन बाज़ियां शतरंज की खेलीं। इतà¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤¨ से खाना खाया और अनà¥à¤¯à¥ दिनों से कà¥à¤› अधिक। फिर आराम से सो गया, कि जैसे उसे कोई चिनà¥à¤¤à¤¾ नहीं है। मां का दिल उचाट था। खाने-पीने का तो जिकà¥à¤° ही कà¥à¤¯à¤¾, वह मन मारकर à¤à¤• जगह बैठà¤à¥€ न सकती थी। पड़ोस की औरतें हमेशा की तरह आयीं। वह किसी से कà¥à¤› न बोली। बदहवास-सी इधर-उधर दौड़ती फिरती थीं कि जैसे चà¥à¤¹à¤¿à¤¯à¤¾ बिलà¥à¤²à¥€ के डर से सà¥à¤°à¤¾à¤– ढूंढ़ती हो। कोई पहाड़-सा उसके सिर पर गिरता था। उसे कहीं मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ नहीं। कहीं à¤à¤¾à¤— जाय, à¤à¤¸à¥€ जगह नहीं। वे घिसे-पिटे दारà¥à¤¶à¤¨à¤¿à¤• विचार जिनसे अब तक उसे सानà¥à¤¤à¤µà¤¨à¤¾ मिलती थी-à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯, पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤®, à¤à¤—वान की मरà¥à¤œà¥€-वे सब इस à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• विपतà¥à¤¤à¤¿ के सामने वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ जान पड़ते थे। जिरहबखà¥à¤¤à¤° और लोहे की टोपी तीर-तà¥à¤ªà¤• से रकà¥à¤·à¤¾ कर सकते हैं लेकिन पहाड़ तो उसे उन सब चीजों के साथ कà¥à¤šà¤² डालेगा। उसके दिलो-दिमाग बेकार होते जाते थे। अगर कोई à¤à¤¾à¤µ शेष था, तो वह à¤à¤¯ था। मगर शाम होते-होते उसके हृदय पर à¤à¤• शनà¥à¤¤à¤¿-सी छा गयी। उसके अनà¥à¤¦à¤° à¤à¤• ताकत पैदा हà¥à¤ˆ जिसे मजबूरी की ताक़त कह सकते हैं। चिड़िया उस वकà¥à¤¤ तक फड़फड़ाती रही, जब तक उड़ निकलने की उमà¥à¤®à¥€à¤¦ थी। उसके बाद वह बहेलिये के पंजे और क़साई के छà¥à¤°à¥‡ के लिठतैयार हो गयी। à¤à¤¯ की चरम सीमा साहस है।
उसने धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° को पà¥à¤•à¤¾à¤°à¤¾-बेटा, कà¥à¤› आकर खा लो।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° अनà¥à¤¦à¤° आया। आज दिन-à¤à¤° मां-बेटे में à¤à¤• बात à¤à¥€ न हà¥à¤ˆ थी। इस वकà¥à¤¤ मां ने धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° को देखा तो उसका चेहरा उतरा हà¥à¤† था। वह संयम जिससे आज उसने दिन-à¤à¤° अपने à¤à¥€à¤¤à¤° की बेचैनी को छिपा रखा था, जो अब तक उड़े-उड़े से दिमाग की शकल में दिखायी दे रही थी, खतरे के पास आ जाने पर पिघल गया था-जैसे कोई बचà¥à¤šà¤¾ à¤à¤¾à¤²à¥‚ को दूर से देखकर तो खà¥à¤¶à¥€ से तालियां बजाये लेकिन उसके पास आने पर चीख उठे।
दोनों ने à¤à¤• दूसरे की तरफ़ देखा। दोनों रोने लगे।
मां का दिल खà¥à¤¶à¥€ से खिल उठा। उसने आंचल से धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° के आंसू पोंछते हà¥à¤ कहा-चलो बेटा, यहां से कहीं à¤à¤¾à¤— चलें।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° चिनà¥à¤¤à¤¾-मगà¥à¤¨ खड़ा था। मां ने फिर कहा-किसी से कà¥à¤› कहने की जरूरत नहीं। यहां से बाहर निकल जायं जिसमें किसी को खबर à¤à¥€ न हो। राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की सेवा करने के और à¤à¥€ बहà¥à¤¤-से रासà¥à¤¤à¥‡ हैं।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° जैसे नींद से जागा, बोला-यह नहीं हो सकता अमà¥à¤®à¤¾à¤‚। करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ तो करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है, उसे पूरा करना पड़ेगा। चाहे रोकर पूरा करो, चाहे हसंकर। हां, इस खà¥à¤¯à¤¾à¤² से डर लगता है कि नतीजा न जाने कà¥à¤¯à¤¾ हो। मà¥à¤®à¤•à¤¿à¤¨ है निशाना चूक जाये और गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° हो जाऊं या उसकी गोली का निशाना बनूं। लेकिन खैर, जो हो, सो हो। मर à¤à¥€ जायेंगे तो नाम तो छोड़ जाà¤à¤‚गे।
कà¥à¤·à¤£-à¤à¤° बाद उसने फिर कहा-इस समय तो कà¥à¤› खाने को जी नहीं चाहता, मां। अब तैयारी करनी चाहिà¤à¥¤ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ जी न चाहता हो तो न चलो, मैं अकेला चला जाऊंगा।
मां ने शिकायत के सà¥à¤µà¤° में कहा-मà¥à¤à¥‡ अपनी जान इतनी पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ नहीं है बेटा, मेरी जान तो तà¥à¤® हो। तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखकर जीती थी। तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ छोड़कर मेरी जिनà¥à¤¦à¤—ी और मौत दोनों बराबर हैं, बलà¥à¤•à¤¿ मौत जिनà¥à¤¦à¤—ी से अचà¥à¤›à¥€ है।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने कà¥à¤› जवाब न दिया। दोनों अपनी-अपनी तैयारियों में लग गये। मां की तैयारी ही कà¥à¤¯à¤¾ थी। à¤à¤• बार ईशà¥à¤µà¤° का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ किया, रिवालà¥à¤µà¤° लिया और चलने को तैयार हो गयी।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° का अपनी डायर लिखनी थी। वह डायरी लिखने बैठा तो à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं का à¤à¤• सागर-सा उमड़ पड़ा। यह पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹, विचारों की यह सà¥à¤µà¤¤: सà¥à¤«à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ उसके लिठनयी चीज थी। जैसे दिल में कहीं सोता खà¥à¤² गया हो। इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ लाफ़ानी है, अमर है, यही उस विचार-पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ का विषय था। आरà¤à¥à¤ à¤à¤• दरà¥à¤¦à¤¨à¤¾à¤• अलविदा से हà¥à¤†-
‘रà¥à¤–सत! ठदà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ की दिलचसà¥à¤ªà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, रà¥à¤–सà¥à¤¤! ठजिनà¥à¤¦à¤—ी की बहारो, रà¥à¤–सत! ठमीठे जखà¥à¤®à¥‹à¤‚, रà¥à¤–सत! देशà¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚, अपने इस आहत और अà¤à¤¾à¤—े सेवक के लिठà¤à¤—वान से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करना! जिनà¥à¤¦à¤—ी बहà¥à¤¤ पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ चीज़ है, इसका तजà¥à¤°à¥à¤¬à¤¾ हà¥à¤†à¥¤ आह! वही दà¥à¤–-दरà¥à¤¦ के नशà¥à¤¤à¤°, वही हसरतें और मायूसियां जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जिंदगी को कडà¥à¤µà¤¾ बना रखा था, इस समय जीवन की सबसे बड़ी पूंजी हैं। यह पà¥à¤°à¤à¤¾à¤¤ की सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥€ किरनों की वरà¥à¤·à¤¾, यह शाम की रंगीन हवाà¤à¤‚, यह गली-कूचे, यह दरो-दीवार फिर देखने को मिलेंगे। जिनà¥à¤¦à¤—ी बनà¥à¤¦à¤¿à¤¶à¥‹à¤‚ का नाम है। बनà¥à¤¦à¤¿à¤¶à¥‡à¤‚ à¤à¤•-à¤à¤• करके टूट रही हैं। जिनà¥à¤¦à¤—ी का शीराज़ा बिखरा जा रहा है। ठदिल की आज़ादी! आओ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ नाउमà¥à¤®à¥€à¤¦à¥€ की कबà¥à¤° में दफ़न कर दूà¤à¥¤ à¤à¤—वानॠसे यही पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ है कि मेरे देशवासी फलें-फूलें, मेरा देश लहलहाये। कोई बात नहीं, हम कà¥à¤¯à¤¾ और हमारी हसà¥à¤¤à¥€ ही कà¥à¤¯à¤¾, मगर गà¥à¤²à¤¶à¤¨ बà¥à¤²à¤¬à¥à¤²à¥‹à¤‚ से खाली न रहेगा। मेरी अपने à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ से इतनी ही विनती है कि जिस समय आप आजादी के गीत गायें तो इस ग़रीब की à¤à¤²à¤¾à¤ˆ से लिठदà¥à¤† करके उसे याद कर लें।’
डायरी बनà¥à¤¦ करके उसने à¤à¤• लमà¥à¤¬à¥€ सांस खींची और उठखड़ा हà¥à¤†à¥¤ कपड़े पहनेखॠरिवालà¥à¤µà¤° जेब में रखा और बोला-अब तो वकà¥à¤¤ हो गया अमà¥à¤®à¤¾à¤‚!
मां ने कà¥à¤› जवाब न दिया। घर समà¥à¤¹à¤¾à¤²à¤¨à¥‡ की किसे परवाह थी, जो चीज़ जहां पड़ी थी, वहीं पड़ी रही। यहां तक कि दिया à¤à¥€ न बà¥à¤à¤¾à¤¯à¤¾ गया। दोनों खामोश घर से निकले।–à¤à¤• मरà¥à¤¦à¤¾à¤¨à¤—ी के साथ क़दम उठाता, दूसरी चिनà¥à¤¤à¤¿à¤¤ और शोक-मगà¥à¤¨ और बेबसी के बोठसे à¤à¥à¤•à¥€ हà¥à¤ˆà¥¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¥€ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का विनिमय न हà¥à¤†à¥¤ दोनों à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯-लिपि की तरह अटल, मौन और ततà¥à¤ªà¤° थे-गदà¥à¤¯à¤¾à¤‚श तेजसà¥à¤µà¥€, बलवानॠपà¥à¤¨à¥€à¤¤ करà¥à¤® की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾, पदà¥à¤¯à¤¾à¤‚श दरà¥à¤¦, आवेश और विनती से कांपता हà¥à¤†à¥¤
à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥€ में पहà¥à¤à¤šà¤•à¤° दोनों चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª बैठगये। कोई आध घणà¥à¤Ÿà¥‡ के बाद साहब की मोटर निकली। धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने गौर से देखा। मोटर की चाल धीमी थी। साहब और लेडी बैठे थे। निशाना अचूक था। धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने जेब से रिवालà¥à¤µà¤° निकाला। मां ने उसका हाथ पकड़ लिया और मोटर आगे निकल आयी।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने कहा-यह तà¥à¤®à¤¨à¥‡ कà¥à¤¯à¤¾ किया अमà¥à¤®à¤¾à¤‚! à¤à¤¸à¤¾ सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¤¾ मौक़ा फिर हाथ न आयेगा।
मां ने कहा-मोटर में मेम à¤à¥€ थी। कहीं मेम को गोली लग जाती तो?
‘तो कà¥à¤¯à¤¾ बात थी। हमारे धरà¥à¤® में नाग, नागिन और सपोले में कोई à¤à¥€ अनà¥à¤¤à¤° नहीं।’
मां ने घृणा à¤à¤°à¥‡ सà¥à¤µà¤° में कहा-तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ धरà¥à¤® जंगली जानवरों और वहशियों का है, जो लड़ाई के बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ उसूलों की à¤à¥€ परवाह नहीं करता। सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ हर à¤à¤• धरà¥à¤® में निरà¥à¤¦à¥‹à¤· समà¤à¥€ गयी है। यहां तक कि वहशी à¤à¥€ उसका आदर करते हैं।
‘वापसी के समय हरगिज न छोडूंगा।’
‘मेरे जीते-जी तà¥à¤® सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पर हाथ नहीं उठा सकते।’
‘मैं इस मामले मे तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ पाबनà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का गà¥à¤²à¤¾à¤® नहीं हो सकता।’
मां ने कà¥à¤› जवाब न दिया। इस नामरà¥à¤¦à¥‹à¤‚ जैसी बात से उसकी ममता टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‡-टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‡ हो गयी। मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² से बीस मिनट बीते होंगे कि वहीं मोटर दूसरी तरफ़ से आती दिखायी पड़ी। धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने मोटर को गौर से देखा और उछलकर बोला- लो अमà¥à¤®à¤¾à¤‚, अबकी बार साहब अकेला है। तà¥à¤® à¤à¥€ मेरे साथ निशाना लगाना।
मां ने लपककर धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° का हाथ पकड़ लिया और पागलों की तरह जोर लगाकर उसका रिवालà¥à¤µà¤° छीनने लगा। धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° ने उसको à¤à¤• धकà¥à¤•à¤¾ देकर गिरा दिया और à¤à¤• कदम रिवालà¥à¤µà¤° साधा। à¤à¤• सेकेणà¥à¤¡ में मां उठी। उसी वकà¥à¤¤ गोली चली। मोटर आगे निकल गयी, मगर मां जमीन पर तड़प रही थी।
धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° रिवालà¥à¤µà¤° फेंककर मां के पास गया और घबराकर बोला-अमà¥à¤®à¤¾à¤‚, कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†? फिर यकायक इस शोकà¤à¤°à¥€ घटना की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤à¤¿ उसके अनà¥à¤¦à¤° चमक उठी-वह अपनी पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ मां का कातिल है। उसके सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ की सारी कठोरता और तेजी और गरà¥à¤®à¥€ बà¥à¤ गयी। आंसà¥à¤“ं की बढ़ती हà¥à¤ˆ थरथरी को अनà¥à¤à¤µ करता हà¥à¤† वह नीचे à¤à¥à¤•à¤¾, और मां के चेहरे की तरफ आंसà¥à¤“ं में लिपटी हà¥à¤ˆ शरà¥à¤®à¤¿à¤‚नà¥à¤¦à¤—ी से देखकर बोला-यह कà¥à¤¯à¤¾ हो गया अमà¥à¤®à¤¾à¤‚! हाय, तà¥à¤® कà¥à¤› बोलतीं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं! यह कैसे हो गया। अंधेरे में कà¥à¤› नज़र à¤à¥€ तो नहीं आता। कहॉठगोली लगी, कà¥à¤› तो बताओ। आह! इस बदनसीब के हाथों तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मौत लिखी थी। जिसको तà¥à¤®à¤¨à¥‡ गोद में पाला उसी ने तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ खून किया। किसको बà¥à¤²à¤¾à¤Šà¤, कोई नजर à¤à¥€ तो नहीं आता।
मां ने डूबती हà¥à¤ˆ आवाज में कहा-मेरा जनà¥à¤® सफल हो गया बेटा। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ हाथों मेरी मिटà¥à¤Ÿà¥€ उठेगी। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ गोद में मर रही हूà¤à¥¤ छाती में घाव लगा है। जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ तà¥à¤®à¤¨à¥‡ गोली चलायी, मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ सामने खड़ी हो गयी। अब नहीं बोला जाता, परमातà¥à¤®à¤¾ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ खà¥à¤¶ रखे। मेरी यही दà¥à¤† है। मैं और कà¥à¤¯à¤¾ करती बेटा। मॉठकी आबरू तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ हाथ में है। मैं तो चली।
कà¥à¤·à¤£-à¤à¤° बाद उस अंधेरे सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¥‡ में धरà¥à¤®à¤µà¥€à¤° अपनी पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ मॉठके नीमजान शरीर को गोद में लिये घर चला तो उसके ठंडे तलà¥à¤“ं से अपनी ऑंसू-à¤à¤°à¥€ ऑंखें रगड़कर आतà¥à¤®à¤¿à¤• आहà¥à¤²à¤¾à¤¦ से à¤à¤°à¥€ हà¥à¤ˆ दरà¥à¤¦ की टीस अनà¥à¤à¤µ कर रहा था।
Great story…v touching.
gr8 work by gr8 man.i always liked munshi’s stories. in my school days also i have read many stories of mumshi ji.
but i m little confussed abt the massage mumshi ji wanna givein this story. was the dharamvir wrong, as freedom fighter? if he is not following gandhiism, does it means he was wrong? if he wasn’t then y his mom was stopeing him? does it means if one is not according to u then he is wrong?
i agree that he was the only hope of his mom, and she never wanted to lose him. but does it means she will stop himfrom doing his first duty of country. in my opinion dharamveer was far far more superior then others. he knows he will not get second chance if caught. but was ready to take that risk and the setback which krantiveer like dharamveer gave to british was irreplaceble.
तरà¥à¤£,
I way I interpret the message in this story is as follows:
1. Human life is most precious. No matter how big is your cause, it does not give you the right to kill anyone. In that sense, terrorists who are killing innocent people, might have their own justified causes. But they are criminals. And the innocent people they are killing are someone’s beloved mother, father…
2. It also narrates the struggle of a mother. Even if she knows what her son is doing is right (for the country), she knows that she’ll lose him (no matter what). So before seeing anything happening to her son, she decides to end her life.
3. Like it is said “A terrorist for one, may be a hero, a freedom-fighter for someone else.” Our freedom fighters were definitely terrorists for the british…
Shantanu,
Thanks for your efforts for putting this here..
I send this story to Shantanu for some other reason that he has simply failed to grasp (and so have all others) ! I, for one, was shocked to read this story. I think there is something terribly wrong with way Munshi Premchand used to think…well,now we know why outsiders found it so easy to plunder our country’s hard earned wealth for centuries
Below is a story by Charles Riggs, this will make it clear what I wanted to say
Not so long ago and in a pasture a flock of sheep lived and grazed. They were protected by a dog, who answered to the master, but despite his best efforts from time to time a nearby pack of wolves would prey upon the flock.
One day a group of sheep, more bold than the rest, met to discuss their dilemma. “Our dog is good, and vigilant, but he is one dog and the wolves are many. The wolves he catches are not always killed, and the master judges and releases many to prey again upon us, for no reason we can understand. What can we do? We are sheep, but we do not wish to be food, too!”
One sheep spoke up, saying “It is his teeth and claws that make the wolf so terrible to us. It is his nature to prey, and he would find any way to do it, but it is the tools he wields that make it possible. If we had such teeth, we could fight back, and stop this savagery.” The other sheep clamored in agreement, and they went together to the old bones of the dead wolves heaped in the corner of the pasture, and gathered fang and claw and made them into weapons.
That night, when the wolves came, the newly armed sheep sprang up with their weapons and struck at them and cried “Begone! We are not food!” and drove off the wolves, who were astonished. When did sheep become so bold and so dangerous to wolves? When did sheep grow teeth? It was unthinkable!
The next day, flush with victory and waving their weapons, they approached the flock to pronounce their discovery. But as they drew nigh, the flock huddled together and cried out “Baaaaaaaadddd! Baaaaaddd things! You have bad things! We are afraid! You are not sheep!”
The brave sheep stopped, amazed. “But we are your brethren!” they cried, “We are still sheep, but we do not wish to be food. See, our new teeth and claws protect us and have saved us from slaughter. They do not make us into wolves, they make us equal to the wolves, and safe from their viciousness!”
“Baaaaaaaddd!”, cried the flock,”the things are bad and will pervert you, and we fear them. You cannot bring them into the flock. They scare us!”. So the armed sheep resolved to conceal their weapons, for although they had no desire to panic the flock, they wished to remain in the fold. But they would not return to those nights of terror, waiting for the wolves to come.
In time, the wolves attacked less often and sought easier prey, for they had no stomach for fighting sheep who possessed tooth and claw even as they did. Not knowing which sheep had fangs and which did not, they came to leave sheep out of their diet almost completely except for the occasional raid, from which more than one wolf did not return. Then came the day when, as the flock grazed beside the stream, one sheep’s weapon slipped from the folds of her fleece, and the flock cried out in terror again, “Baaaaaaddddd! You still possess these evil things! We must ban you from our presence!”.
And so they did. The great chief sheep and his court and council, encouraged by the words of their moneylenders and advisors, placed signs and totems at the edges of the pasture forbidding the presence of hidden weapons there. The armed sheep protested before the council, saying “It is our pasture, too, and we have never harmed you! When can you say we have caused you hurt? It is the wolves, not we, who prey upon you. We are still sheep, but we are not food!”. But the flock would not hear, and drowned them out with cries of “Baaaaaaddd! We will not hear your clever words! You and your things are evil and will harm us!”.
Saddened by this rejection, the armed sheep moved off and spent their days on the edges of the flock, trying from time to time to speak with their brethren to convince them of the wisdom of having such teeth, but meeting with little success. They found it hard to talk to those who, upon hearing their words, would roll back their eyes and flee, crying “Baaaaddd! Bad things!”.
That night, the wolves happened upon the sheep’s totems and signs, and said, “Truly, these sheep are fools! They have told us they have no teeth! Brothers, let us feed!”. And they set upon the flock, and horrible was the carnage in the midst of the fold. The dog fought like a demon, and often seemed to be in two places at once, but even he could not halt the slaughter. It was only when the other sheep arrived with their weapons that the wolves fled, vowing to each other to remain on the edge of the pasture and wait for the next time they could prey, for if the sheep were so foolish once, they would be so again. This they did, and do still.
In the morning, the armed sheep spoke to the flock, and said, “See? If the wolves know you have no teeth, they will fall upon you. Why be prey? To be a sheep does not mean to be food for wolves!”. But the flock cried out, more feebly for their voices were fewer, though with no less terror, “Baaaaaaaadddd! These things are bad! If they were banished, the wolves would not harm us! Baaaaaaaddd!”. The other sheep could only hang their heads and sigh. The flock had forgotten that even they possessed teeth; how else could they graze the grasses of the pasture? It was only those who preyed, like the wolves and jackals, who turned their teeth to evil ends. If you pulled their own fangs those beasts would take another’s teeth and claws, perhaps even the broad flat teeth of sheep, and turn them to evil purposes.
The bold sheep knew that the fangs and claws they possessed had not changed them. They still grazed like other sheep, and raised their lambs in the spring, and greeted their friend the dog as he walked among them. But they could not quell the terror of the flock, which rose in them like some ancient dark smoky spirit and could not be damped by reason, nor dispelled by the light of day.
So they resolved to retain their weapons, but to conceal them from the flock; to endure their fear and loathing, and even to protect their brethren if the need arose, until the day the flock learned to understand that as long as there were wolves in the night, sheep would need teeth to repel them.
They would still be sheep, but they would not be food!
For yr reading pleasure, a collection of Premchand’s Stories मà¥à¤‚शी पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦ की रचनाà¤à¤